माधुरी अपने घर पर बैठकर काम कर रही थी तभी उसके मित्रों ने बाहर से आवाज़ लगाई । “माधुरी, चलो, बगीचे में चलते हैं ।” माधुरी एक बार तो खुश हो कर उठी पर उसके बाद मुँह बनाकर फिर से बैठ गई और अपना काम करने लगी । उसकी दादी दूर से उसे देख रही थी । तभी फिर से नीचे माधुरी के मित्रों की आवाज आई, “माधुरी जल्दी आओ।” माधुरी उठी और उसने अपने कमरे की खिड़की से नीचे झाँका । वो
कहने लगी, “मुझे नहीं जाना । तुम सब जाओ,” और फिर अपने कमरे में आकर काम करने लगी ।
उसकी दादी यह सब देख रही थी । उन्होंने माधुरी को अपने पास बुलाया । उन्होंने माधुरी से पूछा, ”क्या बात है, माधुरी तुम क्यों नहीं जा रही बगीचे में खेलने?” “मुझे नहीं जाना, वहाँ बहुत गंदगी है। दूर से ही बदबू आने लगती है ।” दादी चुप हो गई । ठीक ही तो कह रही थी माधुरी । बगीचे के एक ओर कूड़ेदान था । आए दिन लोग अपने घरों से कूड़ा वहाँ फेंकते रहते थे और कूड़े का इतना अंबार लग गया था । ऐसे माधुरी तो फिर कभी खेलने नहीं जाएगी । दादी को बहुत ख़राब लग रहा था। खेलने के दिन हैं बच्ची के लेकिन खेले तो कैसे !
दादी को अपने दिन याद आ गए थे । कैसे बचपन में अपने मित्रों के साथ आम के बाग़ में खेला करती थी, कभी तालाब में सहेलियों के साथ डुबकियां लगाना तो कभी पेड़ों पर झूले डालकर ऊँची- ऊँची पींगेॱ लेना। कितना मज़ा आता था खुली हवा में दौड़ना , खूब खेलना कि बस पूछो मत ! ये बच्चे तो वैसे ही खेलने नहीं जाते क्योंकि टीवी पर कार्टून ही देखते रहते हैं और जो जाना चाहते हैं , उन्हें खेलने की उचित जगह ही नहीं मिलती । दादी मन मसोस कर रह गयी ।
एक दिन माधुरी की कक्षा में विज्ञान की पढ़ाई हो रही थी ।अध्यापिका ने बताया कि केंचुए हम इंसानों के लिए अच्छा काम करते हैं । ये हमारे मित्र होते हैं। ये जैविक पदार्थों को खाते हैं ओर उसे खाद में बदल देते हैं। इस तरह यह हमारे कूड़े के ढेर को भी कम करते हैं। किसानों के खेतों को उपजाऊ बनाते हैं।माधुरी ने बड़े ध्यान से उनकी बात सुनी । उसके मन में यह विचार आया कि वह कूड़े के कारण बगीचे में खेलने नहीं जा सकती , क्यों न इस उपाय के बारे में सोचा जाए।
वह विद्यालय ख़त्म होने पर वह घर गयी और कुछ सोचती रही। दादी ने उसे पुकारा पर उसने सुना नहीं । दादी ने उसे पुचकारते हुए पूछा, “क्या बात है बेटा? जब से स्कूल से आई है , बस अपने कमरे में बैठकर कुछ सोचती ही जा रही हो। मुझे बताओ शायद मैं तुम्हारी उलझन को सुलझा दूँ।” माधुरी ने कहा, “दादी मेरे मन में एक बात आ रही है। अगर केंचुए हमारे कूड़े को खा सकते हैं और उसे खाद में बदल सकते हैं तो क्यों नहीं हम बगीचे के पास के ढेर को काम में ले आयें।”
दादी मुस्कारी दी। उन्हें अच्छा लगा कि उनकी माधुरी ने ऐसी बात सोची पर उन्हें पता था कि यह काम इतना आसान नहीं है। इसके लिए लोगों को तैयार करना पड़ेगा, कि वे कूड़ा फेंकते समय इतना ध्यान दें कि दो अलग-अलग कूड़ादान रखें। एक में जैव-अपघटन योग्य जैसे कागज, खाने की सामग्री जैसे फलों , सब्जियों के छिलके, कागज, कपड़ों के टुकड़े, फल और अन्य वस्तुएँ और दूसरे में जैव-अपघटन अयोग्य वाली वस्तुएँ जैसे काँच, अलमुनियम डालें।जैव-अपघटन योग्य आसानी में मिटटी में मिल जाती हैं और कुछ दिनों में खाद बन जाती है। इससे काफी हद तक कूड़े का निपटारा भी हो जाएगा।
माधुरी ने सबसे पहले इन्टरनेट और पुस्तकालय से जानकारी एकत्रित की , अपने मित्रों से बातचीत की, उन्हें समझाया। वे तो सब समझ गए। माधुरी ने सोचा चलो अब तो काम बन गया। अगले दिन जब सब मित्र इकट्ठा हुए तो माधुरी ने सबसे पहले यही प्रश्न किया, “हाँ भाई, घर में क्या सबने बात मान ली?” बच्चों ने अपना सिर नीचे झुका लिया। माधुरी ने फिर पूछा , “क्या बात है , तुम लोग चुप क्यों हो? ” सबने कहा कि उनकी बात तो कोई नहीं सुनता, सबने मजाक समझा ओर बोला कि यह बच्चों का खेल नहीं है। कौन अलग अलग कूड़ेदान रखेगा। वैसे ही सब इससे दूर भागना चाहते हैं।
माधुरी समझ गयी कि यह काम जितना आसान लग रहा था , उतना आसान यह था नहीं. लोगों की आदत बदलना सबसे मुश्किल काम था । ऐसे काम नहीं चलेगा। वह भी कहाँ हिम्मत हारने वाली थी। उसने रात को अपने दादा, दादी पापा , मम्मी और बड़े भाई से बात की। सबने यही निर्णय लिया कि वे सब कालोनी में अपने- अपने मित्रों से बात करेंगे।
घर के सभी लोगों ने अपने अपने स्तर पर बातचीत की। दादी तो अगले दिन जब अपनी उम्र की सहेलियों से मिली तो सबको उन्होंने अपने बचपन की बात याद दिलाई। सभी को यह बात खराब लगी कि उनके बच्चे कूड़े के कारण पार्क में खेलने नहीं जाते। सबने तय किया कि वे सब अपने घरों के कूड़े को दो अलग प्रकार से बांटकर रखेंगे।
माधुरी की मम्मी ,पापा और दादाजी भी अपने मित्रों के साथ नगर निगम के ऑफिस पहुँचे और उनसे सहायता मांगी। उन्होंने यह आश्वासन दिया कि वे जल्द ही पार्क में कूड़े को खाद बनाने की प्रक्रिया को आरंभ करेंगे । बच्चों की टोली ने पोस्टर बनाए , अपनी कालोनी में जगह- जगह लगाए। बच्चों की टोली ने मिलकर प्रतिदिन नुक्कड़ नाटक की तैयारी की और थोड़े दिनों में उनका नाटक तैयार हो गया।
अब प्रत्येक दिन, शाम को सारे मित्र मिलते और हर आने जाने वाले को अपना नाटक दिखाते। सब लोग उन्हें घेरकर नाटक देखते, नाटक ख़त्म होने पर लोग आपस में बातचीत करते हुए अपने घर की ओर बढ़ जाते। बच्चे एक दूसरे को देख मुस्कराते क्योंकि उन्हें समझ आ रही थी कि लोगों की मानसिकता में बदलाव आ रहा है।
धीरे- धीरे अब सबने अपने घर में दो तरह के कूड़ेदान रख लिए थे। एक में जैविक कूड़ा ओर द्सरे में अजैविक कूड़ा डालते। जैविक कूड़े का कूड़ा-दान हारे रंग का था तथा अजैविक कूड़े का कूड़ा-दान नीले रंग का। कूड़े वाला अजैविक कूड़े का अलग ढेर बनाता। माली काका ने भी पार्क में बड़ा सा गढ्ढा खोद डाला । अब वह मोहल्ले का जैविक कूड़ा उस गढ्ढे में डालता । इस ढेर पर पानी छिड़कने के उपरांत नगर निगम वालों ने केंचुओं को डाल दिया । कुछ दिनों तक ये केंचुए कार्बनिक पदार्थ को खाते रहे ओर और मल त्याग करके खाद तैयार करते रहे। धीरे- धीरे खाद बनकर तैयार हो गयी।
नगर निगम के कर्मचारियों की मदद से अजैविक कूड़े को वहाँ से नियमित रूप से हटाया जाने लगा। बच्चों ने देखा कि माली काका अब जैविक कूड़े से बनी खाद को बीच बीच में पौधों को डाल रहे थे। पार्क में सभी पौधे अब अधिक खिले हुए लग रहे थे। पौधों को पोषक खाद्य सामग्री मिल रही थी और बच्चों को भी सुंदर उद्यान मिल गया था। वे अब प्रतिदिन पार्क में खेलने आते थे और माधुरी की दादी उन्हें पार्क में देखकर बहुत खुश होती थी। सबके मिलकर इतनी बड़ी समस्या का समाधान निकाल लिया था।