मुन्नु बड़ा ही नटखट बालक है। हर समय इधर से उधर फुदकता रहता है। एक पल में कुर्सी के नीचे और दूसरे पल पलंग के ऊपर । कभी बिस्तर पर बैठ किताबें पढ़ना तो कभी टी वी पर अपना मनपसंद कार्टून देखना। पर उसकी सबसे अधिक प्रिय जगह है पास का मैदान जहाँ वह पेड़ों पर चढ़ती उतरती गिलहरियों को देखता रहता है।
गिलहरियाँ कितनी चुस्त होती हैं। उनके कान लंबे और नोकीले होते हैं। ज़रा सी आवाज़ हुई कि उसे पता चल जाता है और तुरंत वहाँ से भाग खड़ी होती है। उसकी दुम के क्या कहने! कितनी घनी और मुलायम रोयों से ढकी होती है।
जब गिलहरी अपने पिछले पैरों के सहारे बैठकर अगले पैरों से किसी फल को पकड़कर कुतरती है तो कितनी प्यारी लगती है। उसका तो बस एक ही काम है अपने कोटर से निकलकर कभी इस डाली पर तो कभी उस डाली पर दौड़ लगाना। ऐसी फुर्ती से भागती है कि बस पूछो मत !
मुन्नु तो उस मैदान में जाकर जैसे गिलहरियों की दुनिया में ही खो जाता है। पीठ पर तीन धारियों वाले गिलहरी का पीछा करते तो कितना समय निकल जाता है उसे पता ही नहीं चलता।
ऐसे ही एक दिन शाम को वह मैदान में पहुँचा तो उसने देखा कि एक बिल्ली एक गिलहरी के पीछे पड़ी हुई है। गिलहरी तो बड़ी फुर्ती से उससे बच कर निकल रही थी पर बिल्ली भी कुछ कम नहीं थी। मुन्नु झट से बिल्ली के पीछे पहुँचा और अपना पैर पटका ।
बिल्ली अचानक हुई आवाज़ से डर गई और भाग खड़ी हुई। मुन्नु बहुत खुश हुआ। जैसे ही उसे गिलहरी का ध्यान आया वह तो पेड़ पर पहुँच चुकी थी। वह मन ही मन गिलहरी के फुर्तीलेपन को देखकर मुसकरा उठा और वहाँ से चल दिया।
अगले दिन वह शाम को मैदान में पहुँचा ही था कि उसने देखा कि बिल्ली ने अपने पंजों में गिलहरी को पकड़ा हुआ है।गिलहरी छटपटा रही थी पर बिल्ली के नुकीले पंजे उसके शरीर को जकड़े हुए थे। मुन्नु ने आस पास देखा। उसे पास ही एक सूखी टहनी पड़ी दिखाई दी।
उसने लपक कर इसे उठाया और बिल्ली के पीछे अचानक से कूदा। बिल्ली अपने पीछे अचानक हुई हलचल को देखने के लिए जैसै ही मुड़ी उसका ध्यान गिलहरी से हट गया और उसका पंजा ढीला पड़ गया। मुन्नु ने पीछे से टहनी दिखाई। बिल्ली डर के मारे भाग गई।
गिलहरी उसके पंजों से छूट तो गई थी पर बहुत ही घायल हो चुकी थी। मुन्नु ने झट से उसे को उठाया और घर की ओर दौडा। उसने गिलहरी के घावों को धोया और उसपर मरहम लगाया।गिलहरी अब भी निढाल पड़ी थी। मुन्नु ने अपने हाथों से एक-एक बूँद पानी गिलहरी के मुँह में टपकाया।
धीरे धीरे उसने पानी पीया और थोड़ी देर के लिए आँखें खोलीं। मुन्नु बहुत खुश हुआ। वह आँगन में पड़ी एक टोकरी ले आया। उसमें अपनी माँ की मदद से टोकरी में पुराने कपड़े बिछा कर गिलहरी के लिए गद्दा बना दिया। अब धीरे से मुन्नु ने उसे वहाँ लेटा दिया।
गिलहरी ने हल्के से अपनी आँखें खोली मानो मुन्नु को धन्यवाद दे रही हो। फिर उसने आँखें बंद कर ली और आराम से सो गई।
मन्नु ने टोकरी उठा कर अपने पलंग पर रख ली। वह उसे पास रख कर सो तो गया पर थोड़ी-थोड़ी देर में उठकर टोकरी में झाँक लेता।
सुबह हुई तो चिर्प की आवाज़ हुई। मुन्नु की नींद खुल गई। उसने टोकरी में झाँका । गिलहरी ने आखें खोली हुई थी और पहले से बेहतर लग रही थी। मुन्नु ने फिर उसे थोड़ा पानी पिलाया और टोकरी में थोड़े से अनार के दाने डाल दिए। गिलहरी धीरे धीरे उन्हें कुतरने लगी।
मुन्नु को आज बहुत अच्छा लग रहा था। मुन्नु ने उसकी अच्छी तरह देखभाल करता और उसके घावों पर मरहम लगाता। तीन दिन बाद गिलहरी ठीक होने लगी । वह अब उसे पहचानने लगा गई थी। कभी वह टोकरी के अंदर से झाँकती तो कभी खिड़की पर चढ़कर उसे देखती।
जब मुन्नु स्कूल से वापिस आता तो झट उसके पैरों से लिपट जाती। अब वे दोनों मित्र बन गए थे। जहाँ जाते साथ जाते। अब गिलहरी का नाम भी रख दिया था मुन्नु ने “प्यारी “।
— उषा छाबड़ा
Bahuth hi achchi kahani hai, good work
Nice Story